दीपक

दुनियां कह रही है दीपक जल रहा है,
असल में तो बाती और तेल जल रहा है,
इन्हीं के कारण वो अँधेरा हाथ मल रहा है
फिर भी दुनियां कह रही है दीपक जल रहा है ।

तेल और बाती के बलिदान से निकलती है एक लौ
वह अकेली लौ निपटती है अँधेरे क्यों न हो सौ
इन्हीं के बलिदान से उजाला पल रहा है
फिर भी दुनियां कह रही है दीपक जल रहा है ।

अनाम उत्सर्ग हो गई वो बाती,
लौट कर फिर कभी नहीं आएगी,
अब तो नई बाती नए तेल में नहाएगी,
और अँधेरे को एक दिन जड़ से मिटाएगी ।

इन्हीं के बलिदान से उजाला पल रहा है
फिर भी दुनियां कह रही है दीपक जल रहा है ।

"मनोज नायाब"

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