अजब दीवाना था ajab deewana tha

अजब दीवाना था

रघों में दौड़ रहा है क्या मिलने की आस है
खून ए जिग़र को जाने किसकी तलाश है ।

वो करे लाख सितम तो क्या डर है मुझे
सहने का तुजुर्बा भी तो अपने पास है ।

वो खींचे है कमान पर छोड़ते नहीं तीर ए हुश्न को
हसीनाओं में तड़पाने की यही तो अदा ख़ास है

अजब दीवाना था मर गया तिश्नगी से शायद
समंदर में बहती ये किसकी लाश है ।

लगता है दफ़्न है इस बगीचे में कोई
नायाब उगी नहीं बरसों से यहाँ कोई घास है ।

" मनोज नायाब "

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