शब्द ताकत बड़ी हुए
मत न जोर से न बोल
बारिश में फसलां उगे
नहीं बाढ़ को मोल
सोच में रखो लोच तो जिंदगी में लोचा कम होगा । लेखक एक राष्ट्रवादी कवि है ।
सितारों भरा आसमान sitaron bhara aasmaan
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मुठी भर वफ़ा के सितारे
चंद कतरे
मुहब्बत की चांदनी के
कुछ जज़्बाती बादल
बस कोई इतना सामान
मुझे मुहैया करवा दे
तो ज़मीन पे मैं भी
तुम्हारे लिए
सितारों भरा आसमान
बसा दूँ ।
" यहाँ थूकना मना है " मेरे मोहल्ले की एक दीवार पे लिखा था, " यहाँ थूकना मना है " मन तो कर रहा था उस दीवार पे ये लिख दूँ की जाओ थूकने का हौसला रखते हो तो उन खादी वालों पे थूको जिन्होनें देश की इज्ज़त को तार तार कर दिया अपने कुकर्मों से देश को शर्म सार कर दिया । जाओ थूकने का शौक है तो उन पे थूको जिन्होनें ईमान की सफेदी को भ्रष्टाचार से मैला कर दिया । जहाँ होती थी मिठास शहद सी, नेताओ की जात ने उसे कसेला कर सिया । थूकना है तो उन पे थूको जिन्होंने कश्मीर में खून की नदियाँ बहाई जिन्होंने सोमनाथ की दीवारें ढहाई जिनको कैद के बाद भी दे दी रिहाई उन्हीं लोगो ने खोदी विश्वास की खाई इस दीवार पे थूकने से क्या होगा मेरे भाई पीठ में छुरा घोंपने वाले उन बन्दों पे थूको थाली में छेद करने वाले जयचंदों पे थूको जिन्हें दिखती नहीं हिन्द की धमक दुनियां में थूकना है तो ऐसे आँख वाले अंधों पे थूको । इस दिवार पे थूकने से क्या होगा " मनोज नायाब "
मैं हिन्दू हूँ रील देखते देखते बोर हो जाता हूँ तो बीच बीच में सोफे पर बैठा बैठा चाय की चुस्कियों के साथ पड़ोसी मुल्क के जलते मंदिरों इज़्ज़त लुटती स्त्रियों की खबर देखता रहता हूँ और अफसोस ज़ाहिर कर देता हूँ फिर देखता हूँ बिगबॉस का नया एपिसोड, अब छोड़ो भी यार चिल करो ब्रो नायाब तुम भी न बेकार ही इन सब बातों पर सर खपाते हो कुछ मीना ओ सागर शराब और शबाब पर यार सुनाओ कोई शेर खालिस उर्दू में सरकार देख लेगी ये सब हमें क्या करना है ये सब तो चलता रहता है यही है हश्र गहरी नींद में सोई हुई सेक्युलर कौम का पहचान तो गए होंगें मैं कौन हूँ जी हां सही पकड़े आत्ममुग्धता का हिमालय हूँ अतिआत्मविश्वाश का सिंधु हूँ मैं मूर्खता का चरम बिंदु हूँ लुटता पिटता हिन्दू हूँ । हां हिन्दू हूँ मैं हिन्दू हूँ । मनोज नायाब -:✍️
कोरोना ने कितनी जिंदगियां छीन ली मेरे मोबाइल में जाने कितने नंबर अब ऐसे ही पड़े हैं जिनको डिलीट करू या रहने दु समझ नही पा रहा हूँ जिन नंबरों से रोज़ आया करते थे कभी सलाम कभी दुआ जाने अब क्या उन्हें हुआ न उधर से कोई जवाब आता है न इधर का कोई मज़मून जाता है वो कितनी दूर चले गए कि जहां पर रिश्ते नातों के टावर भी नहीं है । तुम्हारी हंसती मुस्कुराती dp तुम्हारे भेजे हुए वो पुराने message अब भी सहेज कर रखे हैं मित्र आ जाओ यार लौट कर अब दोस्तों की महफिलें सुनी कर गया तू तो धोखेबाज निकला रे तेरी बारी थी न वो चाय पार्टी भी नहीं दी तुमने डायल किया गया नंबर हमारी ज़िंदगी की पहुंच से बहुत दूर है काश इतना भर ही कह दे कोई की की i will call you later तो कयामत तक इंतजार कर लेते बस ये नंबर उन्ही खोए हुए दोस्तों के होने का एहसास है तुम चले गए दोस्त बस छोड़ गए ये मोबाइल नंबर अपना फेसबुक एकाउंट कुछ पुरानी जन्मदिन की केक काटती तस्वीरें कुछ कमैंट्स और अनगिनत लाइक्स बस यही है खजाना मेरे पास तुम्हारी यादों के रूप में । मनोज नायाब
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