Tuesday, November 3, 2015

Munh zor kalam मुंह ज़ोर कलम

मुंह ज़ोर कलम
कलम बड़ी मुँह ज़ोर हो चली
है आजकल
सुनती ही नहीं बात
कुछ कहता हूँ तो पलट कर
जवाब देती है
बड़ी बद्तमीज़ हो चली
है इन दिनों 
सच बोलने पर 
कागज़ का मुँह नोचने लगती
कभी नन्हे और शांत आखर मुस्कुराकर
जज़्बातों की बात करते हैं तो
उनको भी धकियाने लगती है
क्या कहूँ घोर कलयुग 
आजकल की कलमें भी है ना बस मत पूछो,
पिछले इतवार को मुहल्ले में नेताजी
पुरे लाव लश्कर के साथ
वोट मांगने आये थे पिछली बार की तरह
वादों का पिटारा लेकर,
सोचा कुछ पोल खोलूं कागज़ पर लिखकर
पर कलम साफ़ मुकर गयी 
कहने लगी मुझे नासमझ
जीत गए तो काम आएंगे
उल्टा मुझे ही समझाने लगी की
क्या पता कोई ठेका दिलवादे या कोई पेट्रोल पंप allot करवा दे 
या और कुछ नहीं तो कोई पुरस्कार ही दिलवादे ।
तो ये बात है ये कलम भी अब जुगाड़ की राजनीति में लग गयी 
जाने क्या होगा इस देश का 
अब तो ये कलम भी 
कोई पक्ष तो कोई विपक्ष की तरफ 
बड़ी मुंह जोर हो चली है आजकल ।
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