Wednesday, November 4, 2015

Mera pushteni gaon

मेरा गांव (अपना पुश्तैनी गांव छोड़ते वक्त)
बरसों बाद मिला हूँ जैसे आज कई बिछड़ों से
जोड़ दिया किसी ने जैसे कटे सरों को धड़ों से

दुआओं से झोली भर कर साथ लाया हूँ
मिल कर आया हूँ अपने बुजुर्गों से बड़ों से

बंद बोतलें बस प्यास ही बुझा सकती है
अब जाकर तृप्त हुआ मैं आँगन के घड़ों से

झूठी बुलंदियों में जीता रहा तूं बनके टहनियां नायाब
असलियत जान गया जो मिलकर आया अपनी जड़ों से ।।

"मनोज नायाब"

#मेरा गाँव" #gaon# पुश्तैनी

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