Monday, November 2, 2015

Maa mujhe mat maaro माँ मुझे मत मारो

माँ मुझे मत मारो
माँ देखो ना मैं क्या लाई हूँ तुम्हारे लिए
गॉड अंकल ने ये भाग्य की पोटली तुम्हारे
लिए भेजी है माँ
मेरे आते ही तेरा घर खुशियों से भर जायेगा माँ
भगवानजी ने कहा था की जा बेटी तुझे बहुत
ही अच्छे कुल में जन्म लेना है 
तेरे माँ बाप बहुत ही अच्छे संस्कार वाले हैं
तुझे पलकों पे बिठा कर रखेंगे
अब एक बात कह देती हूँ माँ
मुझे खूब खिलोने नए कपड़े कान के झुमके
लिपिस्टिक बिंदी सब चाहिए
मुझे दोगी ना माँ मेरी अच्छी माँ ।
चलो अब मुझे जल्दी से नयी दुनियां में ले आओ ।
पर देखो ना ये डॉक्टर अंकल के हाथ 
में क्या है, ये बड़े बड़े बड़े चाकू छुरी औज़ार सुइयां, माँ बहुत दर्द होगा माँ 
कितना खून बहेगा माँ 
माँ मुझे बचा लो माँ प्लीज मुझे बचा लो
मेरे अधपके कोमल शरीर को औज़ारों से नोचेंगे माँ मेरे शरीर के टुकड़े टुकड़े कर डालेंगे
माँ ।
ये सुइयां मेरे आँखों में धंस जायेगी माँ 
चाकू से मेरे शरीर की बोटी बोटी कर डालेंगे
इन जहरीली दवाओं से मेरा शरीर मोम की तरह गला देंगे माँ
माँ मुझे बचाओगी न माँ बोलो माँ बोलती क्यों 
नहीं माँ । पापा मुझे बचाने जरूर आएँगे माँ पापा कहाँ रह गए अभी तक क्यों नहीं आए ।
जरूर अस्पताल के बाहर बरामदे में लगी कुर्सियों पे बैठे होंगे उन्हें पता चलेगा तो खूब
डाँटेंगे आपको 
माँ सच कहती हूँ माँ बस एक बार बचाले मुझे 
जीना है माँ 
मैं तेरे बहुत काम आउंगी माँ
तेरे हर सुख दुःख में 
भैया से भी पहले आउंगी माँ ।
तु जब बीमार होगी तो तेरे सर पे
बाम लगा दूंगी माँ 
थक जायेगी तो तेरे पैर दबा दूंगी
पापा जब थक कर घर आएंगे तो चाय बना दूंगी माँ बस एक बार आवाज़ लगा देना लाडो चाय बना दे ज़रा पापा के लिए
भैया से कभी नहीं झगड़ूंगी 
दादी जब भी तुझ पे गुस्सा होगी
तुझे बीच में बचाने आउंगी माँ
तु रोटियां बनाएगी तो दौड़ दौड़ कर
पुरे घर को परोसूंगी माँ
जब सब खाना खा कर टीवी देख रहे होंगे 
तो चुपचाप रसोई में बर्तन मांझ दूंगी माँ
फिर घर के किसी कोने में पड़ी रहूँगी माँ
मेरी पढ़ाई के खर्च की चिंता मत करना
ट्यूशन पढ़ा कर गुज़ारा कर लुंगी माँ
माँ मुझे बिंदी लिपिस्टिक खिलोने कुछ नहीं चाहिए माँ 
मेरी किलकारियों से तेरा घर पावन हो जायेगा माँ । तेरा भाग्य बदल दूंगी माँ
बस एक बार बचाले माँ तेरे पैरों में पड़कर
ज़िन्दगी की भीख मांगती हूँ माँ मत मार मुझे
पर जान गयी माँ पिछली बार की तरह इस बार भी मुझे कोख में ही मरना है 
क्योंकि तुम्हे तो बेटा चाहिए ना और पापा भी तेरे साथ मिले हुए हैं ।
मैं जानती हूँ अब क्या होगा
मेरे टुकड़े टुकड़े कर के मेरे मांस के लोथड़ों
को डस्टबीन में डाल दोगे
डेटोल से हाथ धोएंगे पैसे गिनेंगे
और शाम को उन्ही पैसों से चॉक्लेट और
खिलोने खरीद कर ले जाएंगे ।
झूठे संस्कारों का नकली मुखोटा ओढ़े ये कौनसे शरीफ लोगों की दुनियां है
दूसरों की बेटियों को मारकर अपनी बेटी
को उन्हीं पैसों से पालते हैं ।
धिक्कार है ऐसे माँ बाप को 
मैं जान गयी बेटी को हर हाल में मरना है
कोख से बच गयी तो दहेज़ की आग में जलना है ।
“मनोज नायाब”

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