इश्क की दुकान
मेरा सजन
उस नुक्कड़ के हलवाई की तरह
जिसने मुलाकात के लम्हों की
सारी सामग्री इकट्ठा की
और उनको लोइयां बनाई
इश्क की मंद मंद आंच पर
दिल की कढ़ाई में खूब पकाया
वादों और खवाबों की चासनी में
डुबोया
बस फिर क्या था मुहब्बत नाम का
एक लज़ीज़ पकवान
तैयार था
जिसका नाम होठों की तख्ती पर
मुहब्बत कीमत के साथ लिखा और टांग दिया
इश्क की दुकान पर
फिर क्या
शाम तक बेच डाला
अगले दिन फिर कोई नए लम्हों की
नई सामग्री
नए ख्वाबों की चासनी
नया दिल
वाह रे सजन
तेरी इश्क की दुकान
तो खूब चलती है आजकल ।
No comments:
Post a Comment
Pls read and share your views on
manojnaayaab@gmail.com