Monday, November 2, 2015

ishk ki dukaan इश्क की दुकान


इश्क की दुकान


मेरा सजन
उस नुक्कड़ के हलवाई की तरह
जिसने मुलाकात के लम्हों की
सारी सामग्री इकट्ठा की
और उनको लोइयां बनाई
इश्क की मंद मंद आंच पर
दिल की कढ़ाई में खूब पकाया 
वादों और खवाबों की चासनी में
डुबोया
बस फिर क्या था मुहब्बत नाम का
एक लज़ीज़ पकवान 
तैयार था
जिसका नाम होठों की तख्ती पर
मुहब्बत कीमत के साथ लिखा और टांग दिया 
इश्क की दुकान पर
फिर क्या
शाम तक बेच डाला 
अगले दिन फिर कोई नए लम्हों की
नई सामग्री 
नए ख्वाबों की चासनी
नया दिल
वाह रे सजन
तेरी इश्क की दुकान 
तो खूब चलती है आजकल ।

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