एक बेरोज़गार युवक ek berozgaar yuvak

एक बेरोजगार युवक
डिग्रियों के कागजात नत्थी किये हुए,
एक फाइल,
हर साल दिवाली पर फ़क्र से निकलता हूँ
और झाड़ पोंछ के मायूसी से
रख दिया करता हूँ
माँ ने कहा खाली  बैठा क्या करेगा
जा छत पे बिस्तर धूप लगा देना
आचार के मर्तबान रखे हैं
कौवे आये तो भगा देना
पिताजी ने कहा हरे ताज़े मटर
लाया हूँ छील देना
पड़ोस की चाची को
दवा ला देना
मुनिया को स्कूल से ले आता हूँ
गोलू को होमवर्क करवा देता हूँ
ये दोनों बड़े भैया के बच्चे हैं
कल दिल्ली वाले मामा का
टेलीफोन आया
माँ से कह रहे थे
छोड़ो ये सरकारी नौकरी के ख्वाब
मेरे पास भेज दो कुछ काम सीखेगा 3000/- महिना दे दूंगा खाना पीना रहना अलग और क्या चाहिए
अब में बेरोजगार नहीं हूँ
मुझे भी काम मिल गया
मेरे मामा की अपने मोहल्ले में
किराने की दुकान है ।
ट्रेन में जब खाने का पैकेट खोला
तो देखा रोटी के नीचे बिछे थे डिग्री
के कागजात मार्क्सशीट के
फटे हुए टुकड़े
उसी वक्त आँख से
पानी निकल गया,
चलो डिग्रीयां कुछ तो काम आई ।
" मनोज नायाब "
आपका " मनोज नायाब "

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