Draupadi ke cheer si द्रौपदी के चीर सी

द्रौपदी के चीर सी अंतहीन
ये पानी की लड़ियाँ
जुडती जा रही इनसे कड़ियाँ दर कड़ियाँ
छोर भी नहीं इनका
अश्क बहाते आँख थकी
पलकें भी हारी निचोड़ते खंगालते
थके कान भी अब सिसकियों के शोर से
आँख उजालों की अब आदि नहीं
न आए कह देना भोर से
दुखती है रघ-रघ
हँसता है सार जग
हार चले है पग
नहीं भरते अब डग
डाल गया दरारें धेर्य की हांडी में
अब बूंद बूंद रिस रहा ” दर्द का पानी “
मनोज नायाब 15/11/92 10:50 pm

Comments

Popular posts from this blog

यहाँ थूकना मना है yahan thukna mana hai

हां हिन्दू हूँ

13 का पहाड़ा