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दीवार हूँ किला नहीं

बिछड़  सके जो अब तक  मिला नहीं कितने हमले सहुँ दीवार हूँ किला नहीं मेरा दुश्मन तो ये तीरगी है  हवाओं तुमसे तो मगर कोई गिला नहीं मेरे ज़ख्म और भी गहराते गए क्योंकि वक्त पर  किसी ने भी सिला नहीं  तेरा तीर आ रहा था मेरी ही तरफ देख फिर भी मैं अपनी जगह से हिला नहीं

चरागों का काम आसान कर दी न

खोल कर ज़ुल्फ़ें ज़रा शाम कर दो ना तमाम मुस्कुराहटें मेरे नाम कर दो ना अपने रुखसार से पर्दा हटाकर तुम इन चरागों का काम आसान कर दो ना हम भी मशहूर होना चाहते हैं शहर में इश्क़ में ज़रा हमें भी बदनाम कर दो ना