पीर हर लोगी
एक नज़र तुम देखोगी तो पीर हर लोगी
छू ले जो होठो से धतूरा खीर कर दोगी
तुम तो चलती फिरती इक मधुशाला हो
दिल में उतर जाओ तो नशा गंभीर कर दोगी
तुम तो बहता हुआ एक दूध का दरिया हो
उतरो सागर में तो नीर को क्षीर कर दोगी
तेरे नैन कटारी से लगते हैं मुझको तो
खाली दिल मे ज्यों शमशीर भर दोगी
तेरी याद में लिखता हूँ मैं अब तो ग़ज़लें भी
लिखते लिखते तुम नायाब को बशीर कर दोगी
बहुत ही नायाब रचना । बहुत बधाइयां ।
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