क्यों पालकी उठाएं

क्यों उठाएं पालकी
क्यों करें यशस्वी गान
तुम जहां बैठे हो
हम ही बिठाएं
बनकर मोरछल फिर
हम ही क्यों चवर ढुलाऐं.......


क्यों खाएं झूठन
क्यों बिछाए कतरन
क्यों पहने उतरन
जीवित है अभी 
हमारी संवेदनाएं
सिंहासन तले फिर क्यों
हम अपनी खाल बिछाएं.........
.

क्यों करे किसी की
व्यर्थ चाकरी
धमनियां नहीं 
इतनी सांकरी
हम क्यों
अपने लहू का लोटा 
भर भर लुटाएं
तुम्हारी पिपासा
है तो है 
अपने लहू से हम क्यों बुझाए.........


हमारे हिस्से की धूप पर
क्यों पड़ेंगे डाके
रोशनी तुम पियो
और अंधेरा हम फाकें
धूप की फसल आप काटोगे
और सूर्य हम उगाएं
हमारे खेत हमारा ही पसीना
फिर लगान हम क्यों चुकाएं ........

मनोज नायाब











Comments


  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में बुधवार 14 जुलाई 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत बढ़िया । फिर भी टैक्स तो चुकाना ही पड़ेगा ।

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  3. व्वाहहहहह..
    हमारा खेत
    हमारा पसीना
    फिर टैक्स क्यों..
    सादर..

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  4. हर आदमी को सफेदपोश आदमी से ये सवाल करने होंगे। तब जाके असल लोकतंत्र स्थापित होगा। उग्र तेवर व विचारणीय पोस्ट।
    नई रचना पौधे लगायें धरा बचाएं

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  5. बेहतरीन प्रस्तुति ।

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