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ग़ज़ल

दुआओं की ताकत से मौत का कान उमेठा जाए सांसों के चीथड़ों से ज़िंदगी का बदन लपेटा जाए इस पड़ाव पर बस इतना ही ठहराव था अब बाक़ी सफर के लिए सामान समेटा जाए  । ये बर्फीली हवाएं जिस्म जला रही है मेरा चलो इश्क के अंगारों पर ही आज लेटा जाए । हश्र तो इश्क का किताबों में पढ़ा ही था  फिर क्यों अनजाने डर से नायाब दिल बैठा जाए ।