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Showing posts from February, 2021

पीछे हटता दुश्मन

अच्छा लगता है जब दुश्मन सेना  अपने बंकर खुद ही तोड़ रही है । सुन दहाड़ हिंदुस्तानी शेरों की गीदड़ सी फौजें सरहद छोड़ रही है । बर्फ ढकी चोटियां लगती है जैसे धरती मां उजला आँचल ओढ़ रही है । कौन लाएगा दुश्मन का शीश पहले भारत के शेरों में बस यही होड़ रही है । आज जलेंगे सरहद पर घी के दीपक ये देख के आंधी भी रास्ता मोड़ रही है । उधर बिछा दी अपनी लाश को धरती पर बाट जोहती मां उंगली पे दिन जोड़ रही है । फौज से जब बाबूजी आएंगे छुट्टी पर नई स्वेटर को बिटिया पैसा जोड़ रही है । मनोज "नायाब" 9859913535 कवि-लेखक  

मेरा गांव तेरा शहर

गांव की खुरदरी मिट्टी  जरूरी है इस देश के लिए शहर की चमचमाती टाइल्स   पर धान नहीं उगा करते । तुम्हारे uv फ़िल्टर मशीने फीका कर देती है पानी को हमारे गांव में  ज़मीन पर बहता पानी भी मीठे फल उगाती है कमाल है न । तुम्हारे शहर के एअर कंडीशनर  बिजली की बैशाखी से चलते हैं नीम के पेड़ की हवा के लिए नहीं चाहिए कोई  बिजली का कनेक्शन गांव को भुला देने वालों  तुम्हारी भावी पीढियां  लौटकर फिर यहीं आएंगी तुम्हारे बैंक बैलेंस  आराम तो दे सकते हैं मगर मेरे गांव सा शुकुन नहीं । मनोज "नायाब" कवि- लेखक 9859913535