सांप
बेशक चंमडी गोरी है मगर दिल के ये बड़े ही काले है कितना जलना पड़ा सूरज को तब जाकर ये उजाले हैं और तुम मुझे क्या डर दिखाते हो ज़हर का दोस्त मैंने अपनी आस्तीन में तुम जैसे कई सांप पाले हैं
शब्द ताकत बड़ी हुए मत न जोर से न बोल बारिश में फसलां उगे नहीं बाढ़ को मोल सोच में रखो लोच तो जिंदगी में लोचा कम होगा । लेखक एक राष्ट्रवादी कवि है ।