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बच्चों के विवाह से माता पिता की गायब होती भूमिका

बच्चों के विवाह में गायब होती जा रही माता पिता की भूमिका   मनोज चांडक "नायाब " ✍️    एक समय था जब बच्चों की शादी कब करनी है किसके साथ करनी है यह निर्णय माता पिता लेते थे उनके निर्णय में जीवन भर के अनुभव की डिग्री होती थी लोगों के पहचान की गहरी ट्रेनिंग होती थी सामाजिक सम्बन्ध उनके लिए सूचना प्राप्ति का सशक्त माध्यम होता था । उनके द्वारा स्थापित किये गए रिश्तों की इमारत टिकाऊ और मजबूत होती थी मगर समय तेजी से बदलता गया और इस पूरी व्यवस्था में परिवर्तन आता गया ।  अब माता पिता सिर्फ इन्फॉर्म और कन्विन्स किये जाते हैं निर्णय बच्चे स्वंय ले लेते हैं इस पूरी व्यवस्था परिवर्तन के कई पहलू है कुछ सकारात्मक कुछ नकारात्मक  सिर्फ माता पिता के नज़रिए से सोचेंगें तो यह दकियानूसी और पुरानी सोच का प्रतीक हो सकती है और यदि बच्चों के नज़रिए से ही सोचेंगें तो यह माता पिता के अनुभवों की अधिकारों की अवेहलना करना हो जाएगा । मगर पहले यह समझते हैं की यह परिवर्तन कब कब कैसे कैसे आया ज़रा इसको समझते हैं  ध्यान से व्यवस्था परिवर्तन की इस प्रक्रिया को चरणबद्ध तरीके से  समझिए यह ...

सांप

बेशक चंमडी गोरी है मगर दिल के वो बड़े ही काले है कितना जलना पड़ा सूरज को तब जाकर ये उजाले हैं और तुम मुझे क्या डर दिखाते हो ज़हर का दोस्त मैंने अपनी आस्तीन में तुम जैसे कई सांप पाले हैं मेरी धीमी चाल का मज़ाक बनाने वालों सुनो ज़रा उसूलों पे चला हूँ इसलिए भी पैरों में इतने छाले हैं