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पहचान छीन ली #pehchaan cheen li

बारिशों में आया करती थी खुशबू मिट्टी की तुम्हारे इन संगेमरमर के पत्थरों ने मेरे कच्चे आंगन की पहचान छीन ली । बस चटाई पर पड़ते ही सो जाया करते थे मगर तुम्हारे टेलीविज़न ने बच्चों से खो खो कबड्डी की थकान छीन ली । जहां तनख्वाह से ज्यादा उधार मिलता था मगर तुम्हारी निर्मम शॉपिंग मॉल ने मेरे मोहल्ले की सब दुकान छीन ली । हर दीवाली ओ रमज़ान में घुलती थी मिठास मगर तुम्हारे पिज़्ज़ा ओ बर्गर ने मेरे गुड़ के सकरपारों की मिठास छीन ली । मनोज नायाब