बोलते आखर

Wednesday, August 21, 2024

देर से दफ्तर जाने लगा हूँ

बिना चिलमन के इस तरह मत आया कर ।

आ  ही गई हो  तो वक्त यूँ  मत ज़ाया कर ।


नशा उतरता नहीं है कई कई दिनों तक

ज़ालिम मेरे सामने यूँ मत मुस्कुराया कर ।


मैं अक्सर देर से दफ्तर जाने लगा हूँ 

तू सुबह सुबह सीने से मत लगाया कर ।


सुनता हूँ तो कलेजे में हुक सी उठती है

यार तू नायाब  की ग़ज़लें मत गाया कर ।


कच्ची उम्र का नौजवान हूँ समझा करो यार

ए हवा  उनका दुपट्टा मत सरकाया कर ।

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