बोलते आखर

Sunday, April 14, 2024

लौटा दो

जहां बचपन बीता है मेरा 
वो ठाव मुझे लौटा दे ।
जहां बाल सखा रहते थे मेरे
वो गाँव मुझे लौटा दे  ।
बारिश के पानी में चलती थी वो
चाहे सब कुछ लेले मेरा
मेरी नाव मुझे लौटा दे ।

जून दोपहरी बिन चप्पल के 
बेफिक्र घुमा करते थे ।
नीम की छांव तले बैठकर 
खूब बातें किया करते थे
बिना whatsapp के ही 
दोस्त इकट्ठा हो जाते थे
डाल डाल पर चढ़कर
बेर निम्बोली खाते थे
फिर से जीना चाहता हूं बचपन
मेरी धूप मुझे लौटा दे
मेरी छाव मुझे लौटा दे 



जहां बचपन बीता है मेरा 
वो ठाव मुझे लौटा दो ।
जहां बाल सखा रहते थे मेरे
वो गाँव मुझे लौटा दो  ।
बारिश के पानी में चलती थी वो
चाहे सब कुछ ले लो तुम मेरा
पर मेरी नाव मुझे लौटा दो ।


सोचा कि कुछ पल तो 
आराम मिलेगा तुझको
अपने हिस्से के बादल 
सब सौंप दिए तुझको
मुझको भी सफर करना है साथी
मेरी धूप मुझे लौटा दो
मेरी छाव मुझे लौटा दो ।

नाप लिया करते थे 
धूप में सारी बस्ती
पतंग लूटने दौड़ लगाते
कैसी अजब थी मस्ती
वो कभी न थकने वाले 
मेरे पाँव मुझे लौटा दो  ।






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