बोलते आखर

Sunday, February 25, 2024

चाँद को तलूँगा

नायाब --

चांद को तलूँगा आसमान की कढ़ाई में
प्रेम को बांध लूंगा महज़ आखर ढाई में

ये जनवरी की सर्दी और ये अकेलापन
शामें गुजरती अलाव में सुबह रजाई में

क्या खूब इश्क़ निभाया है ज़ालिम ने 
हसरतें कुए में और ख्वाब सभी खाई में

ये हसीनाओं का चक्कर बेकार है
कुछ नहीं झगड़ा करवा गई भाई भाई में

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